अभिव्यक्ति
Sunday 23 August 2015
ये जीवन
ना जाने
ये कब
और कैसे हो गया
कि
मुठ्ठी
में करते करते आसमां
आसमां सा जीवन
मुठ्ठी भर रह गया
करते करते
मुठ्ठी
में जहाँ
ये जीवन
खाली
मुठ्ठी
सा
रीत गया।
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