अभिव्यक्ति
Thursday 29 October 2015
इस पतझड़
1.
इस पतझड़
तेरी याद
झर रही हैं
सूखते पत्तों की तरह
बस एक चिंगारी काफ़ी है
तेरे दीदार की
शोला भड़काने को।
2.
इस पतझड़
तेरी याद से
कुरेदे हुए कुछ ज़ख्म
सूख रहे हैं
और कुछ ख्म हरे हो रहे हैं
तेरी बिसरी यादों से।
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