Wednesday 28 January 2015

अंदर का आदमी



रोज़ सुबह  मन में बहती है एक नदी
उगता है एक पेड़
चहचहाती हैं चिड़ियाँ
कई सारे जानवर भी हो जाते है सक्रिय
पर इनकी सुगबुगाहट से जाग जाता है दिमाग में सोया आदमी
चिड़चिड़ाता है
पसंद नहीं  ये सब उसे
वो  करने लगता है विचार
धीरे धीरे बढ़ता  जाता है ताप उसके विचारों का
तब सूख जाती है नदी
झुलस जाते है पेड़
भाग  खड़े होते है सारे पशु पक्षी
रोज़ ऐसे ही जीतता  जाता है अंदर का आदमी
लंबा होता जाता है इंतज़ार
कि कब हारेगा ये आदमी
कल कल बहेगी नदी
हरियाएगा पेड़
चहकेगे पक्षी
पूरी शिद्दत से सक्रिय होंगे जानवर
और मैं बन जाऊंगा आदमी।



1 comment:

  1. Aap kavita bhi likhte hain !!! Bahut khub. Scansion is alright. Adhunik Hindi kavita sachmuch. But I have very little knowledge on it.

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