Wednesday 15 February 2017

स्थगित पल




उस दोपहर 
जब सारे ब्रह्मांड का नाद सौन्दर्य 
सिमट आया था तुम्हारी वाणी में 
तुम्हारे शब्द मेरे भीतर 
झर रहे थे बसंत की तरह 
तुम्हारी देहगंध टकरा के तन से मेरे 
फ़ैल गयी थी फ़िज़ा में 
तुम्हारी नेह दृष्टि 
समा गई थी मन के किसी कोने में
तुम्हारी मुस्कान तुम्हारे अधरों से होती हुई 
आ बैठी थी मेरे होटों पे 
ठीक उसी समय 
एक पल स्थगित कर दिया था मैंने 
सबसे बचा के  
कभी भविष्य के लिए 
गर मिले कभी तुम 
तो सौप दूँगी तुम्हे 

तुम आओगे ना प्रिये

फिलहाल तो मैं जी रही हूँ 
तुम्हारा वो स्थगित पल ! 

Wednesday 1 February 2017

लम्हा लम्हा


कुछ लम्हे दीदार
कुछ लम्हे ख्याल
कुछ लम्हे इन्तजार 
कुछ लम्हे इकरार
कुछ लम्हे बातें
कुछ लम्हे वादे
कुछ लम्हे खुशी
फिर
इन लम्हों का सिला
हर लम्हा बस
तेरी याद 
तेरी याद।