Wednesday 27 January 2016

इस सर्द


इस सर्द मौसम
तेरी याद की
भीनी भीनी खुशबू
घुल रही है सांसों में
नरम नरम धूप के
अहसास सी

समय की धार से

मन के उस पार
संघनित होती जाती
धुंध सी उदासी
आहिस्ता आहिस्ता
उड़ती जाती
भाप सी।
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यादों का मौसम से कोई रिश्ता तो नहीं

(गूगल से साभार) 

 







 
 उस जगह
जहाँ हमने कभी
गुनगुनाया था प्रेम
और
बोए थे कुछ सपने
एक ज़िंदगी उगाने को

अब वो जगह

पड़ी हैं वीरान वीरा
कुछ उदास उदास
बह रहा है
एक शोर धीमा धीमा
 सूखे पत्तों का
 मोजार्ट और बीथोहोवेन की उदास धुनों सा
 और मैं सुन हूँ बहका बहका सा।
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नितांत खालीपन वाले इस समय में